1985 की एक बेमिसाल फिल्म "मेरी जंग" जिसकी कहानी के पात्र ज़िन्दगी के कठिन पहलुओ से जूझते है तो कभी टूटते है पर आख़िरकार जीत उस सकारात्मकता की होती है जो उनको जीने का हौसला और ताकत देती है | आज समाज जिन परिवेशो को जनम दे रहा है उनमें जीने के लिए जो सकारात्मकता चाहिए शायद ही कुछ लोगो में जीवित है जो लड़ते है उन नकारात्मक विचारो से, जो जूझते है उन नकारात्मक भावो से, जो डटकर सामना करते है उन नकारात्मक किर्याकलापो का |
नकारात्मक भावो का उत्पन होना स्वयं है पर सकारात्मक भावो को उत्पन करना मनुष्यता है | चारो तरफ फैली नकारात्मक उर्जा अन्दर की सकारात्मकता को झकझोर देती है और व्यक्ति उससे हारने लगता है | पर सत्य ये नहीं है | वास्तविकता तो ये है व्यक्ति सकारात्मकता को देखना ही नहीं चाहता वरन ऐसी कोई नकारात्मकता नहीं जो सकारात्मकता को हरा सके | समय लगता है और लगेगा भी क्यों नहीं हर एक चीज़ का समय निर्धारित है | नकारात्मकता के अंत का समय तभी आता है जब सकारात्मकता उससे लड़ने के लिए तैयार हो , चाहे जो हो जाए पर हौसला ना छोड़ने का भाव ही सकारात्मकता है |
हौसला न छोड़ कर सामना
वो बदल रहा है देख रंग आसमान का
ये शिकस्त का नहीं ये फतह का रंग है
ज़िन्दगी हर कदम एक नयी जंग है |
शायद व्यक्ति के लड़ने के भाव का समाप्त होना ही उसकी हार है और जब व्यक्ति एक परिवेश से निकल कर दूसरे में जाकर ये सोचता है की यहाँ चुनोतिया नहीं है तो ये उसकी भूल है क्योकि आगे बढ़ने पर पहले से ज्यादा चुनोतिया तैयार होती है और व्यक्ति का उन चुनोतियो की उपेक्षा करना ही सबसे बड़ी समस्या है जो कभी भी सामने आकर खड़ी हो जाती है | अगर इस समस्याओ को समाप्त करना है तो तैयार होकर जाना पड़ेगा अपनी सारी सकारात्मकता के साथ ताकि व्यक्ति उन सब चुनोतियो से हर हाल में जीत सके और अपने एक प्रयास से लाखो की जीत सुनिश्चित कर सके |
जब तक व्यक्ति को अपनी जीत की सकारात्मकता नहीं होगी तब तक वो समाज की जीत का दृश्य भी नहीं देख सकता | किसी भी समाज की जीत, उस समाज के व्यक्तिओ की जीत पर निर्भर करती है और ये जीत तभी मुमकिन है जब विचारों की जीत में द्रढ़ता हो |
रोज़ कहा ढूँढेंगे, सूरज चाँद सितारों को
आग लगा कर हम रोशन कर लेंगे अन्धिरयों को
गम नहीं जब तलक दिल में ये उमंग है
ज़िन्दगी हर कदम एक नयी जंग है |
पथ पर आने वाली सभी कठनाईयों को सिर्फ जीतकर नहीं बल्कि उनको उस पथ से हटाकर आगे बढ़ना ही सकारात्मकता है और मंजिल पर पहुचने पर जो विशवास खुद के अलावा बाकियों को मिलता है वो अद्भुत होता है |
- ब्रजमोहन वत्सल