दिन-प्रतिदिन चारो ओर होते बदलाव जहाँ एक ओर नये से लगते है वही दूसरी ओर एक डर भी देते है कि क्या इसकी ज़रुरत है? ज़रूरतें बदलाव की बुनियाद भी कही जा सकती है पर क्या बदलाव होने से ज़रूरतें पूरी होती है ये कहना कठिन है |
समय के साथ मानसिकता में बदलाव होना ज़रूरी है पर किस हद तक?, ये हद
शायद तब आती है जब अच्छाई बुराई की तरफ मुड़ने लगे | मानसिकता में बदलाव अथार्थ बुराई को छोड़कर अच्छाई की तरफ आना ही सही मायनों में उचित है पर आज की मानसिकता के बदलाव का स्वरुप बदलता जा रहा है जो ज़रूरतों से परें है |
आज जहाँ युवा पीढ़ी अपनी ज्येष्ठ पीढ़ी की मानसिकता को समझने में नाकाम होती नज़र आती है वही ज्येष्ठ पीढ़ी युवा पीढ़ी की ज़रूरतों को समझने में विफल होती नज़र आती है | दोनों पीढ़ी का परस्पर बदलाव होना ज़रूरी है पर एक दूसरे की ज़रूरतों को ध्यान में रखना भी ज़रूरी है |
बदलाव अगर उचित नहीं तो ज़रूरतें कभी पूरी नहीं होगी, और अगर ज़रूरतों का चयन उचित नहीं तो बदलाव का कोई महत्त्व नहीं |
वास्तविकता में बदलाव और ज़रुरत का एक गहन सम्बन्ध है जो आज की पीढ़ी के लिए सोचने और समझने का विषय है और इसकी सही परिभाषा भी तभी है जब इनका परस्पर सम्बन्ध किया जाए |
किसी भी व्यक्ति, समाज, राज्य या देश को ये समझने की ज़रुरत है कि बदलाव का महत्त्व सही मायनों में तभी है जब व्यक्ति, समाज, राज्य या देश की ज़रूरतों का महत्त्व समझा जाएँ |
समय के साथ बदलाव होना स्वाभाविक है पर इस स्वाभाविकता को सही दिशा देना व्यक्ति, समाज, राज्य या देश का महत्वपूर्ण निर्णय है और ये निर्णय तभी साकार हो सकता है जब इस स्वाभाविक बदलाव के स्वरुप की बुनियाद आज की ज़रूरतों पर निर्भर हो |
- बृजमोहन वत्सल.